रविवार, सितंबर 26, 2010

तपा सकेँ अगर सोना तो हृदय मेँ अगन होँनी चाहिए।

हो चुके बहुत उपाय अब तो कुछ बदलना चाहिए।
इंसान को वक्त के साथ ही बदल जाना चाहिए।।

    खेलकर आग से जलाये हमने बहुत-से घर, शहर।
    अब तो बर्फ की मानिद पिघल जाना चाहिए ।।

सुगंध इस गुलशन की खोई हुई है कहीँ ।
इस गुलशन को अब तो फिर से संभारना चाहिए ।।

रविवार, सितंबर 19, 2010

ऐ चाँद बता तु तेरा हाल क्या है ?

ऐ-चाँद बता तू ,
  तेरा हाल क्या हैँ ?
    किस जुस्तजू मेँ ,
      तू फँसा हुआ ?
        क्यूँ छाया हुआ
          घनघोर अँधेरा ।
            बता तेरी चाँदनी
               को हुआ क्या हैँ ?

रविवार, सितंबर 12, 2010

जिसको तुम अपना कहते हो यारो , बहम तुम्हारा है।

खो जाने दो मुझको यारो , उन गुमनाम अंधेरोँ मेँ ।
 लौटे जहाँ से कोई ना सुरज , आते देख सवेरोँ मेँ।।
  
       पोछो मत तुम मेरे आँसू , इनको अब बह जाने दो ।
       देखेगा जब कोई इनको , अपनी व्यथा सुनाने दो।।

 मेरी तड़पन मेरे दिल से , यारो अब तुम मत पूछो ।
 जहाँ ले चली राहेँ मुझको , जाने दो तुम मत रोको।।

सोमवार, सितंबर 06, 2010

जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ

जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ,
तब गीत मेरा तुम गा लेना।

     घुमड़ रहे होँ जब सोचो के बादल,
     तब तुम बर्षा बनकर रो लेना।

जब याद सताये किसी हमसफर की,
तब कल्पित मूरत तुम उसकी बना लेना।

     बेकरारी हद से जब बढ़ती जाये,
     संदेश उसे तुम अपना भिजबा देना।

बिन उसके जब जिया ना जाये,
तब दिल मेँ उसे तुम बसा लेना।
    
       लगने लगे जब ऊचाईयोँ से डर।
       इस जमीँ को थोड़ा ऊपर उठा लेना।