रविवार, फ़रवरी 20, 2011

सितारा कहूँ क्यूँ ? चाँद है तू मेरा


भूल गया अब ये दिल मेरा ,
जो हुआ था गम इसे तेरा ।

ढूढ़ता है तुम्हीँ को अब ये ,
देखा है जब से चहरा तेरा ।

आईना आँखोँ का साफ है तेरा ,
दिखता है इसमेँ चहरा सिर्फ मेरा ।

सितारा कहूँ क्यूँ ? चाँद है तू मेरा ,
तू जमीँ नहीँ आसमां है मेरा ।

"अंजान" कैद पिँजरे मेँ परिन्दे की तरह ,
सोया है मुकद्दर हर वक्त मेरा ।

रविवार, फ़रवरी 13, 2011

इक झलक दिखाके चले गये


इक झलक दिखाके चले गये ,
वो हमको तड़पाके चले गये ।

ये कैसा किया सितम उन्होँने ,
हमको तरसाके चले गये ।

लबोँ पे दिखाके वो मुस्कान ,
हम पे बिजली सी गिरा गये ।

झटके अपने यूँ उन्होँने बाल ,
चहरे पे काली घटा से छा गये ।

अँखियोँ का किया इशारा ऐसा ।
हम सारी दुनियाँ भूल गये ।

नैनोँ से चलाके तीर अपने ,
वो हमको घायल कर गये ।

पलटके देखा जब उन्होँने ,
वो रहा सहा भी मार गये ।

हाथोँ के देके वो इशारे ,
फिर मिलने को कह गये ।

रविवार, फ़रवरी 06, 2011

देखे थे जो मैँने ख्याब

देखे थे जो मैँने ख़्वाब ,
हर ख़्वाब का खून हुआ है ।

दूर दूर तक नहीँ है कोई ,
वीराना चारोँ ओर बसा है ।

कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।

ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।