रविवार, अप्रैल 24, 2011

ख्वाब रखो


रहो जमीँ पे मगर आसमां का ख्वाब रखो,
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो।

खड़े न हो सको इतना न सर को झुकाओ कभी,
तुम अपने हाथ मेँ किरदार की किताब रखो।

रविवार, अप्रैल 17, 2011

बस ढूंढते रह जाओगे


चीजोँ मेँ कुछ चीज, बातोँ मेँ कुछ बातेँ,
वो होगी, जो देख नहीँ पाओगे
कुछ समय बाद, बस ढूँढते रह जाओगे ।

बच्चोँ मेँ बचपन, जवानोँ मेँ यौवन,
संतो की वाणी, कर्ण सा दानी
नल मेँ पानी, जैल सिँह सा ग्यानी
नानी की कहानी, रावण सा अभिमानी ।
कुछ सालोँ बाद, बस ढूंढते रह जाओगे ।

सोमवार, अप्रैल 11, 2011

जमाना


कैसा आ गया है जमाना अब रिश्वत का ,
ये हवायेँ करेँगी फैसला अब दीये की किस्मत का ।