शनिवार, अगस्त 06, 2011

लचीलापन(कहानी)



एक साधक के पास एक
व्यक्ति ने आकर अपना
दुखड़ा सुनाया। वह अपनी
पत्नी से बहुत परेशान था।
उसने कहा कि उसकी पत्नी
बहुत कंजूस और कठोर
अनुशासन वाली है। उसके
नियम ,कायदोँ और
पाबंदियोँ से वह तंग आ
गया है।

साधक ने उसकी बात गौर
से सुनी और सांत्वना दी।
साधक ने अगले दिन उसकी
पत्नी को अपने पास
बुलाया। उसकी पत्नी भी
साधक के प्रति आस्था
रखती थी। साधक ने पहले
उससे घर-गृहस्थी की बातेँ
पूछी और देखते ही देखते
अचानक अपनी मुट्ठी को
कस कर बंद किया। फिर
कहा कि अगर मेरा हाथ
हमेशा के लिए ऐसा हो जाए
तो तुम क्या कहोगी ?

आश्चर्यचकित होकर वह
बोली , यही कहूँगी कि
आपका हाथ खराब हो गया
है। किसी भी व्यक्ति की
मुट्ठी इस तरह हमेशा बंद
नहीँ रहती है।

फिर साधक ने हाथ को
खोलकर सीधा फैला दिया
और कहा कि अगर मेरा
हाथ हमेशा के लिए ऐसा हो जाए , उंगलियां मुड़े ही नहीँ
तो क्या कहोगी ?

उस स्त्री ने कहा , तब भी
यही कहूँगी कि हाथ खराब
हो गया है।

साधक ने मुस्करा कर हवा
मेँ उंगलियोँ को खोलते ,
बंद करते , नचाते और
लहराते हुए कहा , याद
रखो यह है वैवाहिक जीवन
का रहस्य।

4 टिप्पणियाँ:

S.VIKRAM ने कहा…

nice story with good moral....thanx..:)

http://aarambhan.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी ही सार्थक कहानी।

SAJAN.AAWARA ने कहा…

Bahut hi achi kahani hai...
Jai hind jai bharat

केवल राम ने कहा…

जीवन है ही लचीलापन.....वर्ना हम कहीं के भी नहीं रहेंगे ...!