गुरुवार, जुलाई 22, 2010

बादल

बादल पे करके भरोसा,
बरसात की जो आस बंधी।

आया हवा का जो एक झोका,
बदली ना जाने कहाँ उड़ चली।।

मंगलवार, जुलाई 13, 2010

युगान्तर

राम युग मेँ दूध दिया,
कान्हा युग मेँ घी।

कलयुग मेँ शराब दी,
इसे सोच समझ कर पी।।

मंगलवार, जुलाई 06, 2010

नारी की लाचारी

मैँने अखबार मेँ पढ़ा कि एक महिला से उसके शराबी पति ने शराब के लिए पैसे माँगे जो कि उसके पास नहीँ थे तो उसने मना कर दिया। फिर पति ने मंगलसूञ माँगा बेचकर शराब लाने के लिए तो उसने कहा ये मेरा सुहाग है इसे मैँ नहीँ दुँगी ।इतने पर पति ने महिला के मुँह पर तेजाब फेँक दिया और मँगलसूञ तोड़कर भाग गया। मैँने इस घटना को इन शव्दोँ मेँ ब्यान किया हैँ ।.....................

सोमवार, जुलाई 05, 2010

एक फकीर की मौत

देखो फुटपाथ पे पड़ा है फकीर,
भूख और ठण्ड़ से मरा होगा।

हो गई है लो अब सहर,
फूल और मालाओँ से सजाय जायेगा।।

करके पैसा इकट्ठा हुजूम,
अब ढकने को इसे कफन लाएगा।

जल्द दफना के कब्र मेँ इसे,
अकड़ने से बचाया जायेगा।

बन जायेगा यूँ इसका मकबरा,
अब इसे पूजा जायेगा।।

मेरा भ्रम

ना जमीँ हैँ, ना आसमाँ,
जाने पड़े हैँ,कदम मेरे कहाँ?

यह भ्रम ही है मेरा
या है मेरी ही दास्ताँ?

चले हैँ हम जाने कहाँ?
नहीँ है यहाँ कोई रास्ता!

सभी कुछ तो है बस तेरे सिवा यहाँ,
तू ही नहीँ है बस, है सारा जहाँ यहाँ!

दिल है, जिगर है, हिम्मत है,
बस नहीँ है तो तेरे करीब आने का रास्ता!

दिल लगाने की सजा

हमने दिल लगा तो लिया है उनसे,
मगर दिल लगाने की सजा पाई हैँ।

लोग पत्थरोँ से चोट खाते हैँ,
हमने तो फूलोँ से चोट खाई हैँ।।

तमन्ना थी हमको सुहाने मौसम की,
मगर क्यूँ गमोँ की बरसात पाई हैँ।

कहते हैँ लकीरोँ मेँ तकदीर लिखी होती है,
मगर हमनेँ लकीरोँ से ही मात खाई है।।

गालिब ने दुआ दी जिँदगी हजार साल हो,
मगर सालोँ की जिँदगी दिनोँ मेँ बिताई हैँ।

जुग्नूँ बनके आया शमाँ के पास रोशनी के लिए,
मगर शमाँ ने तो मौत की सौगात दी है।।

गुरुवार, जुलाई 01, 2010

गोलियाँ

आजाद होके खूब,बरसतीँ हैँ गोलियाँ।
लोगोँ को मार-मार के हँसती हैँ गोलियाँ ।।

निर्दोष जिँदगी के घरोँ को उझाड़ कर,
बस्ती मेँ बिना खौफ के बसतीँ हैँ गोलियाँ ।

जिस दिन से यहाँ राजपथ हुआ ।
कानून उसी दिन से यहाँ लाईलाज है ।।

संवेदनाएँ भूनती बस से उतार कर ।
सच्चाई ढूढ़ - ढूढ़ कर डसतीँ हैँ गोलियाँ ।।

भूखोँ तड़प - तड़त कर कोई दम ना तोड़ना ।
महँगाई के भी दौर मेँ सस्ती हैँ गोलियाँ ।।