आजाद होके खूब,बरसतीँ हैँ गोलियाँ।
लोगोँ को मार-मार के हँसती हैँ गोलियाँ ।।
निर्दोष जिँदगी के घरोँ को उझाड़ कर,
बस्ती मेँ बिना खौफ के बसतीँ हैँ गोलियाँ ।
जिस दिन से यहाँ राजपथ हुआ ।
कानून उसी दिन से यहाँ लाईलाज है ।।
संवेदनाएँ भूनती बस से उतार कर ।
सच्चाई ढूढ़ - ढूढ़ कर डसतीँ हैँ गोलियाँ ।।
भूखोँ तड़प - तड़त कर कोई दम ना तोड़ना ।
महँगाई के भी दौर मेँ सस्ती हैँ गोलियाँ ।।
महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
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2 वर्ष पहले
2 टिप्पणियाँ:
प्रिये साथियो , मेरे इस ब्लोग " संसार " पर आप सभी का स्वागत हैँ ।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। शुभकामनायेँ
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