रविवार, अक्तूबर 31, 2010

जुबाँ की खामोशी

देखकर मुझे ही निगाह, उसकी उठी होगी ,
कोई उसे शायद सतह ना मिली होगी।

लब तो हिले थे उसके, कहना कुछ चाहती होगी,
क्यूँ, मगर कैसे ? वो जुबाँ खामोश रही होगीँ।

शनिवार, अक्तूबर 23, 2010

नजर-नजर से मिले तो कोई बात बने,

नजर-नजर से मिले तो कोई बात बने,
वो हमसफर मेरा बने तो कोई बात बने।

दिल-दिल से मिले तो कोई बात बने,
धडकन कोई मेरी बने तो कोई बात बने।

रविवार, अक्तूबर 17, 2010

आँखोँ मेँ काजल लगा दे रे

मेरा आया यौवन,
    मेरा घूघंटा उठा दे रे।
       मैँ दुल्हन सी लगती हूँ ,
           कोई मुझे दुल्हन बना दे रे।।

    मुझे नीँद ना आये ,
       कोई आँखोँ मेँ,
          काजल लगा दे रे ।
            पाँव मेँ लगे अगन ,
               कोई इनमेँ मेँहदीँ सजा दे रे ।।

रविवार, अक्तूबर 10, 2010

जाने किस बात की सजा देती हो?

जाने किस बात की सजा देती हो?
मुस्कुराती हुई आँखोँ को रूला देती हो।

    देखना चाहता हूँ जब भी नजर भरके ,
    किस अंदाज से नजरोँ को झुका देती हो?

जब भी तोड़ता हूँ गुलशन से गुलाब ,
धीरे से आकर काँटा चुभा देती हो।

रविवार, अक्तूबर 03, 2010

जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ

ना जाने क्या हुआ
     जो तूने छू लिया,
         शरीर मेँ लहू दौड़ने लगा
              कुछ नशा-सा हुआ।।


आँखोँ मेँ मेरी झाँककर
     जब तूने चेहरा झुका लिया,
          लगा मुझे जैसे जमीँ पे
                है चाँद छुपा हुआ।।