सोमवार, नवंबर 21, 2011

कभी न डरना


सच कहने से प्यारे कभी तुम न डरना आगे बढ़ते रहना,
धर्म के कामोँ मेँ तुम आगे बढ़ते रहना।

देश की खातिर भी तुम आगे बढ़ते चलना,
स्वर्ग मार्ग दिखाता है ऐसा करना।

सोमवार, नवंबर 07, 2011

कर्म


कर्म दैविक सम्पदा का द्वार है;
विश्व के उत्कर्ष का आधार है।

कर्म पूजा, साधना का धाम है;
कर्मयोगी को कहीँ विश्राम है।

शुक्रवार, अक्तूबर 21, 2011

प्रगति पथ पर बढ़ता मानव


मानव विकास की चाह मेँ।
बढ़ता हुआ इंसान।।

भौतिक सुखोँ की तलाश मेँ।
प्रकृति के नियमोँ का उल्लंघन कर।
एकांकी बन गया इंसान।।

शनिवार, सितंबर 24, 2011

वर्षा ऋतु


कारे कजरारे बादलोँ की घटा छा रही,
सारा आसमां सबही के मन भाया है।

सोमवार, सितंबर 19, 2011

मुफ्त मेँ सेहत बनाइये


सुबह-सुबह पार्क मेँ क्या होता है,
मत पूछिए गजब का तमाशा होता है।

औरत हो या मर्द, गर्म हो या सर्द,
उछल-कूद मचती है, इक जोश सा होता है।

गुरुवार, सितंबर 08, 2011

दिन कुछ ऐसे गुजरता है कोई


दिन कुछ ऐसे गुजरता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हमको इस घर मेँ जानता है कोई

शनिवार, अगस्त 06, 2011

लचीलापन(कहानी)



एक साधक के पास एक
व्यक्ति ने आकर अपना
दुखड़ा सुनाया। वह अपनी
पत्नी से बहुत परेशान था।
उसने कहा कि उसकी पत्नी
बहुत कंजूस और कठोर
अनुशासन वाली है। उसके
नियम ,कायदोँ और
पाबंदियोँ से वह तंग आ
गया है।

सोमवार, जुलाई 11, 2011

मेहनत


तकदीर नहीँ , हाथोँ की मेहनत
पहुँचाती साहिल तक हमको।

रेल नहीँ , रेल की पटरी
ले जाती मंजिल तक हमको।

शनिवार, जून 25, 2011

बस छोटा सा जीव हूँ मैँ


बस छोटा सा जीव हूँ मैँ
छोटा सा पेट है मेरा
थोड़ा सा ही खाता हूँ
उसे भी ना पचा पाता हूँ।

शनिवार, जून 11, 2011

भ्रष्टाचार (हास्य व्यंग्य)


रास्ते मेँ जाते हुए मेरा पैर
एक बोतल से टकराया ।

अचानक हुआ एक भयानक विस्फोट
फैल गया चारोँ ओर धुँआ ही धुँआ ।

शनिवार, मई 28, 2011

जिँदगी क्या मोड़ लेती है


जिँदगी क्या मोड़ लेती है
हमारा साथ छोड़ देती है ।

गुजरा हुआ पल, बीता हुआ कल,
जिनकी याद मुझे आती है ।

रविवार, अप्रैल 24, 2011

ख्वाब रखो


रहो जमीँ पे मगर आसमां का ख्वाब रखो,
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो।

खड़े न हो सको इतना न सर को झुकाओ कभी,
तुम अपने हाथ मेँ किरदार की किताब रखो।

रविवार, अप्रैल 17, 2011

बस ढूंढते रह जाओगे


चीजोँ मेँ कुछ चीज, बातोँ मेँ कुछ बातेँ,
वो होगी, जो देख नहीँ पाओगे
कुछ समय बाद, बस ढूँढते रह जाओगे ।

बच्चोँ मेँ बचपन, जवानोँ मेँ यौवन,
संतो की वाणी, कर्ण सा दानी
नल मेँ पानी, जैल सिँह सा ग्यानी
नानी की कहानी, रावण सा अभिमानी ।
कुछ सालोँ बाद, बस ढूंढते रह जाओगे ।

सोमवार, अप्रैल 11, 2011

जमाना


कैसा आ गया है जमाना अब रिश्वत का ,
ये हवायेँ करेँगी फैसला अब दीये की किस्मत का ।

रविवार, मार्च 27, 2011

उन्हीँने भुला दिया मुझे जिनपे दिल निसार था


उन्हीँने भुला दिया मुझे जिनपे दिल निसार था ,
लूटा ही गया है मुझको नाम देकर प्यार का ।

ऊपर से हँस दिया मैँ लेकिन दिल मेँ उदासी ही रही ,
क्या मेरी जिँदगी मेँ खुशियाँ जरा सी भी नहीँ ,
भटकता रहा हूँ मैँ कब से तलाशे मुहब्बत मेँ ,
प्यार भरी मेरी ये निगाहेँ प्यार की प्यासी ही रहीँ ।

रविवार, मार्च 13, 2011

दो पल ना रूके वो हमेँ मुदद्तोँ से इंतजार था


दो पल ना रूके वो हमेँ मुदद्तोँ से इंतजार था ,
लूटा ही गया है मुझको नाम देकर प्यार का ।

खुशी के पलोँ मेँ जिन्होँने डाली थी बाँहोँ मेँ बाँहेँ ,
मुझे लगा रोशन होगीँ अब मेरी जिंदगी की राहेँ ,
पर छुड़ा ली बाँहेँ जब मैँ डूबने लगा गम के दरियाँ मेँ ,
अब ऐसे वक्त पे उन्होनेँ क्यूँ फेर ली हैँ निगाहेँ ।

निकले इतने खुदगर्ज जिन्हेँ समझा वफादार था ,
लूटा ही गया है मुझको नाम देकर प्यार का ।

अपने मतलब पे कहाँ से इतने रिश्ते निकल आते हैँ ,
खातिर अपने मतलबोँ की रिश्ता बखूवी निभाते हैँ ,
मगर जब रिश्ता माँगता है कुर्बानी जरा सी भी ,
खून और दिल के रिश्ते भी लोग भूल जाते हैँ ।

रविवार, मार्च 06, 2011

नाटक ना करो जबान से प्यार के इजहार का


नाटक ना करो जबान से प्यार के इजहार का ,
लूटा ही गया है मुझको नाम देकर प्यार का ।

मेरे वो दोस्त जिन पर मैँ करता था नाज कभी ,
करके यकीँ जिनको बतलाये अपने मैँने राज सभी ।
हाय अफसोस ! उन्हीनेँ तोड़ा है मेरे यकीन को ,
पहले नहीँ मालूम था निकलेगेँ धोखेवाज वहीँ ।

कयूँ घोट दिया गला उन्होँने मेरे एकवार का ,
लूटा ही गया है मुझको नाम देकर प्यार का ।

क्यूँ निकले वो वादा फरामोश दिल है कशमाकश मेँ ,
जिनके लिए निभाता रहा मैँ वादे और कशमेँ ।
उन्होँने मुझे नहीँ किया है मेरे प्यार को रूसवा ,
तोड़ डालीँ जिनकी खातिर जमाने भर की रस्मेँ ।

मंगलवार, मार्च 01, 2011

इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये


इक दिल के उसने हजार टुकड़े किये ,
हर टुकड़े को मैँने एक नया दिल बना रखा है ।

कसम दी उसने दिल का हाल किसी से ना कहेँ ,
हर जुबां को उसकी मैँने अहदे वफा बना रखा है ।

दिल से चाहा उसे वफा करता रहा मैँ ,
सामने सभी के मगर बेवफा बना रखा है ।

रविवार, फ़रवरी 20, 2011

सितारा कहूँ क्यूँ ? चाँद है तू मेरा


भूल गया अब ये दिल मेरा ,
जो हुआ था गम इसे तेरा ।

ढूढ़ता है तुम्हीँ को अब ये ,
देखा है जब से चहरा तेरा ।

आईना आँखोँ का साफ है तेरा ,
दिखता है इसमेँ चहरा सिर्फ मेरा ।

सितारा कहूँ क्यूँ ? चाँद है तू मेरा ,
तू जमीँ नहीँ आसमां है मेरा ।

"अंजान" कैद पिँजरे मेँ परिन्दे की तरह ,
सोया है मुकद्दर हर वक्त मेरा ।

रविवार, फ़रवरी 13, 2011

इक झलक दिखाके चले गये


इक झलक दिखाके चले गये ,
वो हमको तड़पाके चले गये ।

ये कैसा किया सितम उन्होँने ,
हमको तरसाके चले गये ।

लबोँ पे दिखाके वो मुस्कान ,
हम पे बिजली सी गिरा गये ।

झटके अपने यूँ उन्होँने बाल ,
चहरे पे काली घटा से छा गये ।

अँखियोँ का किया इशारा ऐसा ।
हम सारी दुनियाँ भूल गये ।

नैनोँ से चलाके तीर अपने ,
वो हमको घायल कर गये ।

पलटके देखा जब उन्होँने ,
वो रहा सहा भी मार गये ।

हाथोँ के देके वो इशारे ,
फिर मिलने को कह गये ।

रविवार, फ़रवरी 06, 2011

देखे थे जो मैँने ख्याब

देखे थे जो मैँने ख़्वाब ,
हर ख़्वाब का खून हुआ है ।

दूर दूर तक नहीँ है कोई ,
वीराना चारोँ ओर बसा है ।

कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।

ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।

रविवार, जनवरी 30, 2011

कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ


कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ ,
रहते हुए जिँदा भी कुछ लोग मुर्दा हुआ करते हैँ ।

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

जीना जानते ही नहीँ वो जीने की बात किया करते हैँ ,
जब नीँद ही नहीँ आती सारी रात क्यूँ सपनोँ की बात करते हैँ ।

गर हिम्मत हो तो हौँसले बुलन्द हुआ करते हैँ ,
मंजिल हो नजर राह हो न हो तो मंजिल से मिला करते हैँ ।

मिलके जुदा हो जाते है फिर भी नजदीक रहा करते हैँ ,
रहते हैँ अंजान एक-दूजे से फिर भी रिश्ते बना करते हैँ ।

रविवार, जनवरी 23, 2011

जब लफ्ज मैँ बन जाता हूँ


जब लफ़्ज मैँ बन जाता हूँ ,
महफिल मेँ गुनगुनाया जाता हूँ ।

जब तीर मैँ बन जाता हूँ ,
नजरोँ से चलाया जाता हूँ ।

गुलशन से लाया जाता हूँ ,
हार गले का बनाया जाता हूँ ।

जब ताज मैँ बन जाता हूँ ,
सहरा मेँ लगाया जाता हूँ ।

हस्ती है मेरी उस फूल सी ,
जिसका इत्र बनाया जाता हूँ ।

रविवार, जनवरी 16, 2011

है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत


मिल-मिल के मिलने का मजा क्यूँ नहीँ देते
हर बार ज़ख्म कोई नया क्यूँ नहीँ देते

ये रात, ये तन्हाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से आकर जगा क्यूँ नहीँ देते

गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते

विछड़-विछड़ के विछड़ने का भी मजा क्यूँ नहीँ देते
हर बार जख्म कोई नया क्यूँ नहीँ देते

हैँ जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत
'अंजान' कब मैँने कहा तुमसे दवा क्यूँ नहीँ देते

मंगलवार, जनवरी 11, 2011

आईँ थी जब सामने मेरे तुम


आईँ थी जब सामने मेरे तुम ,
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ।

आ भी गये जब आमने सामने ,
फिर क्यूँ हो गई जुदा तुम ।

देखा नहीँ गौर से तुमने मुझे ,
रखती गईँ आगे बेरूखी से कदम ।

चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम ।

'अंजान' चाहता है खुद को देखना आँखोँ मेँ तुम्हारी ,
आँखोँ का आके दिखा जाओ अब तो आईना तुम ।

शनिवार, जनवरी 01, 2011

खुदा से भी पहले हमेँ याद आयेगा कोई


बंद गलियोँ से कोई गुजर ना जाये कहीँ ,
ये तो वक्त है सिर्फ वक्त की आवाज नहीँ।

दीदार किया जब से तेरा भाया ना कोई ,
पाने की आरजू मेँ कोई मिट ना जाये कही