रविवार, जनवरी 30, 2011

कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ


कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ ,
रहते हुए जिँदा भी कुछ लोग मुर्दा हुआ करते हैँ ।

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

जीना जानते ही नहीँ वो जीने की बात किया करते हैँ ,
जब नीँद ही नहीँ आती सारी रात क्यूँ सपनोँ की बात करते हैँ ।

गर हिम्मत हो तो हौँसले बुलन्द हुआ करते हैँ ,
मंजिल हो नजर राह हो न हो तो मंजिल से मिला करते हैँ ।

मिलके जुदा हो जाते है फिर भी नजदीक रहा करते हैँ ,
रहते हैँ अंजान एक-दूजे से फिर भी रिश्ते बना करते हैँ ।

रविवार, जनवरी 23, 2011

जब लफ्ज मैँ बन जाता हूँ


जब लफ़्ज मैँ बन जाता हूँ ,
महफिल मेँ गुनगुनाया जाता हूँ ।

जब तीर मैँ बन जाता हूँ ,
नजरोँ से चलाया जाता हूँ ।

गुलशन से लाया जाता हूँ ,
हार गले का बनाया जाता हूँ ।

जब ताज मैँ बन जाता हूँ ,
सहरा मेँ लगाया जाता हूँ ।

हस्ती है मेरी उस फूल सी ,
जिसका इत्र बनाया जाता हूँ ।

रविवार, जनवरी 16, 2011

है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत


मिल-मिल के मिलने का मजा क्यूँ नहीँ देते
हर बार ज़ख्म कोई नया क्यूँ नहीँ देते

ये रात, ये तन्हाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से आकर जगा क्यूँ नहीँ देते

गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते

विछड़-विछड़ के विछड़ने का भी मजा क्यूँ नहीँ देते
हर बार जख्म कोई नया क्यूँ नहीँ देते

हैँ जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत
'अंजान' कब मैँने कहा तुमसे दवा क्यूँ नहीँ देते

मंगलवार, जनवरी 11, 2011

आईँ थी जब सामने मेरे तुम


आईँ थी जब सामने मेरे तुम ,
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ।

आ भी गये जब आमने सामने ,
फिर क्यूँ हो गई जुदा तुम ।

देखा नहीँ गौर से तुमने मुझे ,
रखती गईँ आगे बेरूखी से कदम ।

चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम ।

'अंजान' चाहता है खुद को देखना आँखोँ मेँ तुम्हारी ,
आँखोँ का आके दिखा जाओ अब तो आईना तुम ।

शनिवार, जनवरी 01, 2011

खुदा से भी पहले हमेँ याद आयेगा कोई


बंद गलियोँ से कोई गुजर ना जाये कहीँ ,
ये तो वक्त है सिर्फ वक्त की आवाज नहीँ।

दीदार किया जब से तेरा भाया ना कोई ,
पाने की आरजू मेँ कोई मिट ना जाये कही