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बस छोटा सा जीव हूँ मैँ
छोटा सा पेट है मेरा
थोड़ा सा ही खाता हूँ
उसे भी ना पचा पाता हूँ।
कुछ बर्ष गुजर जाने दो
पेट मेरा थोड़ा बढ़ जाने दो
चारा फिर सारा खा जाऊँगा मैँ
क्षण भर मेँ उसे पचा जाऊँगा मैँ।
बोफोर्स को भी पचा जाऊँगा मैँ
युद्वपोत को भी निगल जाऊँगा मैँ
मदद से यूरिया की इन्हेँ
यूहीँ हजम कर जाऊँगा मैँ।
चप्पल गहने और साड़ियाँ भी
यूहीँ खा जाऊँगा मैँ।
लोगोँ के कफन मेँ भी
अब दलाली खाऊँगा मैँ।
2जी मेँ करके घोटाला
अब चैन से सो पाऊँगा मैँ
खेलोँ मेँ करूँगा घोटाला
तभी तो बड़ा कहलाऊँगा मैँ।
इन गुणोँ को थोड़ा और बढ़ जाने दो
तब सम्पूर्ण मानव बन पाऊँगा मैँ।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना।
आपकी पुरानी नयी यादें यहाँ भी हैं .......कल ज़रा गौर फरमाइए
नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
न जाने कितना खा जायेगा अभी।
KABHI HOTA HAI ESA KI PAL ME MANJAR BEET JATE HAI, HUM JANTE HAI KI APKE FENKE HUYE KHANJAR KIDHAR JATE HAIN. . .
JAI HIND JAI BHARAT
जीव छोटा -सा है.लेकिन 'देखन में छोटे लगे,घाव करे गम्भीर' वाली उक्ति की याद दिला रहा है. वाकई बहुत करारा व्यंग्य है इस कविता में. अब जो ना समझे ,उसे तो हम अनाड़ी समझेंगे ही लेकिन जिन पर व्यंग्य का निशाना साधा गया है, उन पर कोई असर नहीं हुआ तो उन्हें क्या कहेंगे ? बहरहाल इस व्यंग्य रचना के लिए बधाई.
Bahut sundar rachna..
mere bhi blog me aayen.
मेरी कविता
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