सोमवार, नवंबर 07, 2011

कर्म


कर्म दैविक सम्पदा का द्वार है;
विश्व के उत्कर्ष का आधार है।

कर्म पूजा, साधना का धाम है;
कर्मयोगी को कहीँ विश्राम है।

कर्म भावी योजना का न्यास है;
सत्य-चित-आनन्द का अभ्यास है।

कर्म जीवन का मधुरतम काव्य है;
कर्म से ही मुक्ति भी सम्भाव्य है।

4 टिप्पणियाँ:

केवल राम ने कहा…

कर्म जीवन का मधुरतम काव्य है;
कर्म से ही मुक्ति भी सम्भाव्य है।

जीवन दर्शन से ओतप्रोत इस रचना के माध्यम से आपने एक नया फलसफा हमारे सामने पेश किया है ....आपका आभार

Deepak Saini ने कहा…

कर्म ही पूजा है

बहुत सुन्दर कविता
आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कर्मप्रधान विश्व रचि राखा।

SAJAN.AAWARA ने कहा…

karam hi sabse bada dharam hai.....
jai hind jai bharat