ना जाने क्या हुआ
जो तूने छू लिया,
शरीर मेँ लहू दौड़ने लगा
कुछ नशा-सा हुआ।।
आँखोँ मेँ मेरी झाँककर
जब तूने चेहरा झुका लिया,
लगा मुझे जैसे जमीँ पे
है चाँद छुपा हुआ।।
महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
-
आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
...
3 वर्ष पहले
11 टिप्पणियाँ:
बहुत खूबसूरत भाव।
नमस्कार अशोक जी!!!!!!!
बहुत बढिया लिखा है.............
पढ कर अच्छा लगा.............
हमने भी कुछ ठीक ठाक सा लिखा है
कृपया एक नज़र डालें
वाह! वाह!! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आयी हो तुम कौन परी..., करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति है इन पंक्तियों में शुक्रिया
बहुत बढिया भाव हैं जी - जमी पर चाँद.
हमें तो एक भी न दिखा - जो दिखा आस्मां पर ही दिखा.
जमीँ पे चाँद वाह! क्या बात है। खूबसूरत जज्बातोँ से सजी सुन्दर रचना के लिए बधाई।
टीस बड़ी खूबसूरती से उभर कर आई है
अच्छी रचना...बधाई.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। बहुत बढिया भाव हैं जी
हार्दिक शुभकामनाएं!
jnaab bhut khub nyaa andaaz he gaagr men sagr bhrne kaa andaz psnd aayaa . akhtar khan akela kota rajsthan
दर्द अब छुप रहे थे
अहसास तक मिट गए थे !!
फीर से हरे हो गए .
फिर से ताज़े हो गएँ !!
यूं तो काम है आईने और शायरों का जख्म को दीखाना
पर इल्त्त्जा है इतना तुम आईना न बनना.
बहूत बहूत बहूत बधाई
एक टिप्पणी भेजें