रविवार, अक्तूबर 10, 2010

जाने किस बात की सजा देती हो?

जाने किस बात की सजा देती हो?
मुस्कुराती हुई आँखोँ को रूला देती हो।

    देखना चाहता हूँ जब भी नजर भरके ,
    किस अंदाज से नजरोँ को झुका देती हो?

जब भी तोड़ता हूँ गुलशन से गुलाब ,
धीरे से आकर काँटा चुभा देती हो।


     ख्यालोँ मेँ आकर जख्म देती हो,
     फिर जाने किस मर्ज की दवा देती हो?

सोए हुए है यादोँ मेँ तुम्हारी ,
साँस की छुअन से जगा देती होँ।

    ढूढ़ा है वादी मेँ जब भी तुमको,
    जुग्नू की तरहा रास्ता दिखा देती हो।

"अंजान" चाहता है लिखना गजल तुम पे,
दबे पाँव आकर क्यूँ शेअरोँ को मिटा देती हो।।

28 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

अंजान" चाहता है लिखना गजल तुम पे,
दबे पाँव आकर क्यूँ शेअरोँ को मिटा देती हो।

-वाह! बहुत खूब.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उनकी याद आये जब, सभी कुछ भूल जायें हम,
उन्हे फिर भी शिकायत है कि हम कुछ लिख नहीं पाये।

vandana gupta ने कहा…

क्या कहूँ इस गज़ल के लिये………………हर शेर बेहद हसीन दिल मे उतरने वाला है………………ये प्रेम भरी शिकायत जिस अन्दाज़ मे की है अपने साथ बहा ले गयी।

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया लेखन...
मन प्रशन्न हो गया...

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

समीर जी , वन्दना जी , प्रवीण जी तथा अंकुर जी आपकी स्नैह रूपी तथा उत्साहबर्धक टिप्पणीयोँ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

समीर जी , वन्दना जी , प्रवीण जी तथा अंकुर जी आपकी स्नैह रूपी तथा उत्साहबर्धक टिप्पणीयोँ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन भावों को पिरोए अच्छी ग़ज़ल।

रोली पाठक ने कहा…

अंजान" चाहता है लिखना गजल तुम पे,
दबे पाँव आकर क्यूँ शेअरोँ को मिटा देती हो।
बहुत ही भावपूर्ण रचना......
ये पंक्तियाँ तो बहुत ही खूबसूरत हैं.....लाजवाब

sumant ने कहा…

Beautiful.

www.the-royal-salute.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब भी तोड़ता हूँ गुलशन से गुलाब ,
धीरे से आकर काँटा चुभो देती हो।

ख्यालोँ मेँ आकर जख्म देती हो,
फिर जाने किस मर्ज की दवा देती हो?

वाह खूब लिखा है ...सुन्दर

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

मनोज जी , रोली पाठक जी, Sumant ji तथा संगीता स्वरूप जी आपकी स्नैही और उत्साहबर्धक टिप्पणीयोँ के लिए हार्दिक धन्यवाद। आप अपने स्नैह से इसी तरह ही अनुग्रहित करते रहियेगा।

केवल राम ने कहा…

ढूढ़ा है वादी मेँ जब भी तुमको,
जुग्नू की तरहा रास्ता दिखा देती हो।
Aakhir jisse hum beintha mohabat karte hain eah humare liye sabkuch hota ,
Sikayat ka andaj pasand aaya ...!
Sunder gajal
Shubhkamnayen

संजय भास्‍कर ने कहा…

मेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

mridula pradhan ने कहा…

bahot sunder bhaw.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

ghzl men bhr mitr rdif qaafiye kaa taalmel ke sath ritdhm bhi helekin khaas bat yeh he ke is ghzl me drd ka bhut bhut ehsas he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

Aruna Kapoor ने कहा…

...बहुत ही सुंदर गजल का लुफ्त उठा रही हूं मै!....बार बार पढ कर भी मन नही भरता!

somadri ने कहा…

बहुत खूब .....

वो कौन हैं जो आपके हुनर को अनजाने में सबका दुलारा बना देती है

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

ढूढ़ा है वादी मेँ जब भी तुमको,
जुग्नू की तरहा रास्ता दिखा देती हो।
बहुत सुन्दर कहा है. सुन्दर ग़ज़ल के लिए आभार.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जब भी तोड़ता हूँ गुलशन से गुलाब ,
धीरे से आकर काँटा चुभो देती हो।

बहुत खूब .....!!

S.M.Masoom ने कहा…

ढूढ़ा है वादी मेँ जब भी तुमको,
जुग्नू की तरहा रास्ता दिखा देती हो।

"अंजान" चाहता है लिखना गजल तुम पे,
दबे पाँव आकर क्यूँ शेअरोँ को मिटा देती हो।।
बहुत खूब

रविंद्र "रवी" ने कहा…

वाह वाह! बहुत खूब!

Anand Rathore ने कहा…

wah... khoob....bahut khoob

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

बहुत खूब!!!

निर्मला कपिला ने कहा…

अंजान" चाहता है लिखना गजल तुम पे,
दबे पाँव आकर क्यूँ शेअरोँ को मिटा देती हो।
बहुत खूब। मगर इसकी एक बार मात्रा गणना फिर से कर लें। शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ढूढ़ा है वादी मेँ जब भी तुमको,
जुग्नू की तरहा रास्ता दिखा देती हो ...

पूरी ग़ज़ल प्रेम की खुश्बू से महक रही है ... लाजवाब ....

Unknown ने कहा…

वाह! डॉक्. साब बढ़िया लगी आपकी ग़ज़ल। पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ओशो वन ब्लॉग के थ्रू। अब नियमित रूप से आऊँगा। बधाई।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

डॉ. ‘अनजान’ जी,
नमस्कारम्‌!
सुन्दर व भावपूर्ण अभिव्यक्ति है...बधाई!

हाँ... एक विशेष बिन्दु पर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहूँगा कि अनेक स्थानों पर आपसे जाने-अनजाने में चन्द्रबिन्दु (अनुनासिक) का अनावश्यक प्रयोग हो गया है। जैसे-

आँखोँ (सही शब्द होगा : ‘आँखों’)
नजरोँ
ख्यालोँ
यादोँ
मेँ
शेअरोँ

इसे अन्यथा न लें....तथास्तु!