रविवार, अक्तूबर 17, 2010

आँखोँ मेँ काजल लगा दे रे

मेरा आया यौवन,
    मेरा घूघंटा उठा दे रे।
       मैँ दुल्हन सी लगती हूँ ,
           कोई मुझे दुल्हन बना दे रे।।

    मुझे नीँद ना आये ,
       कोई आँखोँ मेँ,
          काजल लगा दे रे ।
            पाँव मेँ लगे अगन ,
               कोई इनमेँ मेँहदीँ सजा दे रे ।।


न चिट्ठी आये ,
   न संदेशा ही आये ।
       कोई मोहे झूठे ही,
           बहला दे रे ।।
        
अब कटे ना ,
   रात ये वीरानी ।
      कोई झूठे ही,
          किवरिया हिला दे रे ।।

14 टिप्पणियाँ:

केवल राम ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति,
ऐसी बातें सोचकर मन हर्षित तो होता ही है

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन के कोमल विचारों की मधुर प्रस्तुति।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

snsaar bhaayi snsaar kaa yhi sch he jo aapne apne snsar pr likhaa he . akhtar khan akela kota rajsthan

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

केवल राम जी , मनोज जी , प्रवीण जी , संजय जी , समीर जी तथा अख्तर खान जी आपकी उत्साही तथा स्नैही टिप्पणीयोँ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

Anand Rathore ने कहा…

bahut badhiyan...

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

कल्पना को सुन्दर शब्दों में साकार किया है.

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

आनन्द राठौर जी तथा रेखा श्रीवास्तव जी आपके इस स्नैह के लिए हार्दिक धन्यवाद।

उस्ताद जी ने कहा…

2/10

कुछ भी ख़ास नहीं
साधारण

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

Achhi Rachna!

Ramesh singh ने कहा…

बहुत खूब......... सुन्दर शब्दोँ को पिरोया है आपने कविता मेँ। बधाई!

शारदा अरोरा ने कहा…

अशोक कुमार जी , बहुत खूब , कोई झूठे ही किवड़िया हिला दे न .....गुनगुनाते हुए शब्दों का चुलबुलापन जैसे खुद ही बोल उट्ठा हो ...यहाँ तक कि मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी भी यही दर्शा रही है , साफ़ दिल और एक कवि की खूबियाँ लिए संवेदनशील मन ! आपको सलाम ...

अनुपमा पाठक ने कहा…

nice poem!