देखे थे जो मैँने ख़्वाब ,
हर ख़्वाब का खून हुआ है ।
दूर दूर तक नहीँ है कोई ,
वीराना चारोँ ओर बसा है ।
कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।
महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
...
3 वर्ष पहले
32 टिप्पणियाँ:
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।
बेहतरीन कहूँ तो कम होगा कहना !
लाजवाब......बेहतरीन गजल.... हर लाइन में सच्चाई है....
एक एक पंक्ति बेहद प्रभावशाली!
बेहद प्रभावशाली गजल|
विचारों को अच्छी तरह सजाते हैं आप|
अभिव्यक्ति की सहजता।
कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।
आदरणीय डॉ . अशोक जी
आपकी रचना आज के हालत को वयां करती है ...आपने जिस तत्परता से अपनी भावनाओं को शब्द दिए हैं ...आपकी रचना कौशलता को दर्शाते हैं ..आपका आभार
ek ek shabda dil me utar gaya.........bahut sundar
this is the real truth..
बहुत सुन्दर !
सुंदर रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत खूब... सुन्दर लिखा ...
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...
लाजवाब!!!
कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।
वा क्या बात कही है आपने!
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए
prabhavshali rachna..!!
प्रिय अशोक जी
नमस्कार !
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है
आदमी से ख़तरनाक कोई नहीं , इसलिए डर तो लगेगा ही … :)
अच्छा काव्य प्रयास है , लगे रहें । हां, सुधार कर ख़्वाब करलें ख्याब के स्थान पर ।
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
>>> संजय भास्कर जी
>>> पाटली दी विलेज जी
>>> नवीन सी चर्तुवेदी जी
>>> प्रवीण पाण्डेय जी
आप सभी ने ब्लोग पर आकर जो प्रोत्साहन दिया हैँ मैँ आपका आभारी हूँ ।
>>> कैलाश सी शर्मा जी
>>> केवल राम जी
>>> वन्दना जी
>>> अना जी
आप सभी के इस प्रोत्साहन और स्नैह का तहेदिल से शुक्रियाँ ।
कहने को साथी हैँ सब मेरे ,
दुश्मन नहीँ है कोई इनमेँ ।
ना जाने फिर भी क्यूँ मुझको ,
इन सब से डर लगा हुआ है ।
क्योंकि अब आदमी जैसा दिखता है वैसा होता नहीं.
खाव सच भी होते हैं नहीं भी। संशय के बादल छट भी जाते हैं।
बहुत खूब बेहद सुन्दर प्रस्तुति......
>>> अमित-निवेदिता जी
>>> साधना वैद जी
>>> डोरोथी जी
>>> डाँ. नूतन जी
आप सभी के सहयोग और प्रोत्साहन के लिए तहेदिल से शुक्रियाँ ।
>>> सुशील बाकलीवाल जी
>>> रविन्द्र रवि जी
>>> राजेन्द्र स्वर्णकार जी
>>> मुकेश कुमार सिँहा जी
आप सभी के स्नैह और सहयोग का मैँ आभारी हूँ ।
सूंदर भावों की शानदार प्रस्तुति।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
बहुत ही अच्छी रचना...
बहुत अच्छी लगी...
>>> कुवँर कुशमेश जी
>>> मनोज कुमार जी
>>> मयंक भारद्धाज जी
>>> वीना जी
आप सभी के इस उत्साहबर्धन तथा सहयोग का दिल से आभार ।
its beautiful
thanx
प्रेम की राहों में कभी कभी ऐसा होता है ...
बहुत दिल से लिखा है ..
मन की कशमकश को खूब लिखा है। दिल को छू गयी पँक्तियाँ। शुभकामनायें।
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