रविवार, जनवरी 30, 2011

कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ


कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ ,
रहते हुए जिँदा भी कुछ लोग मुर्दा हुआ करते हैँ ।

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

जीना जानते ही नहीँ वो जीने की बात किया करते हैँ ,
जब नीँद ही नहीँ आती सारी रात क्यूँ सपनोँ की बात करते हैँ ।

गर हिम्मत हो तो हौँसले बुलन्द हुआ करते हैँ ,
मंजिल हो नजर राह हो न हो तो मंजिल से मिला करते हैँ ।

मिलके जुदा हो जाते है फिर भी नजदीक रहा करते हैँ ,
रहते हैँ अंजान एक-दूजे से फिर भी रिश्ते बना करते हैँ ।

22 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।
बिलकुल सही कहा। लोग जाने क्यों ज़िन्दगी को खुशी से जी नही पाते ।
रचना बहुत कमाल की है। बधाई आपको।

Kailash Sharma ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ...

बहुत सुन्दर रचना..हर पंक्ति दिल को छू लेती है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अब फूल भी अन्दर से कठोर होने लगे हैं।

केवल राम ने कहा…

जीना जानते ही नहीँ वो जीने की बात किया करते हैँ
जब नीँद ही नहीँ आती सारी रात क्यूँ सपनोँ की बात करते हैँ ।


जीवन है ही विरोधाभास का नाम ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद सुंदर रचना..बहुत खूबसूरत है...

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..

Anupama Tripathi ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

सच्ची बात कही है -
खूबसूरत अभिव्यक्ति

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> निर्मला कपिला जी
>>> कैलाश सी शर्मा जी
>>> प्रवीण पांडेय जी
>>> केवल राम जी

आप सभी का ब्लोग पर आने तथा हौसला अफजाई के लिए शुक्रियाँ ।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> संजय भास्कर जी
>>> वन्दना जी
>>> अनुपमा जी

आप सभी का ब्लोग पर आने तथा आपके सहयोग एवं स्नैह के लिए तहेदिल से शुक्रियाँ ।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

मिलके जुदा हो जाते है फिर भी नजदीक रहा करते हैँ ,
रहते हैँ अंजान एक-दूजे से फिर भी रिश्ते बना करते हैँ ।

बहुत सुंदर बात कही है, रिश्ते तो दिल से बना करते हैं और उसका अहसास भी वही से होता है.

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत खूबसूरत गज़ल है ! हर शेर भावपूर्ण और बेहतरीन है ! बधाई एवं शुभकामनायें !

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति । बधाई।

रविंद्र "रवी" ने कहा…

लाजवाब रचना!

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

यह शेर बहुत अच्छा लगा....अनेक रंगों के बादजूद कुछ के जीवन में कोई रंग नहीं होता...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

ज़िन्दगी के रंगों से दो-चार कराती सुन्दर रचना.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ .

वह क्या लाजवाब खूबसूरत ग़ज़ल है .... खिल रहे हैं शेर तमाम ....
और इस शेर को बार बार पढने को दिल करता है ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ .

वह क्या लाजवाब खूबसूरत ग़ज़ल है .... खिल रहे हैं शेर तमाम ....
और इस शेर को बार बार पढने को दिल करता है ..

Shah Nawaz ने कहा…

वाह!!! बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है अशोक भाई....

जिँदगी मेँ यूँ तो हजारोँ रंग हुआ करते हैँ ,
फिर भी जाने क्यूँ कुछ लोग बदरंग हुआ करते हैँ ।

ज़बरदस्त!!!

शारदा अरोरा ने कहा…

जाने किन भावों ने आपसे ये ग़ज़ल लिखवाई , बहुत खूब ...

मनोज कुमार ने कहा…

ज़िन्दगी के कई रंगों को समेटे यह रचना बहुत ही भावपूर्ण है।

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

अशोक भाई आप के पास विचारों का अपार भण्‍डार है और अद्भुत कहन भी| बधाई बन्धुवर|
आप अपनी रचनाओं की लिंक्स मुझे navincchaturvedi@gmail.com पर भेज दिया कीजिएगा|

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> रेखा श्री वास्तव जी
>>> संजय जी
>>> साधना वैद जी
>>> रविन्द्र रवि जी

आप सभी के इस सहयोग और उत्साहबर्धन के लिए दिल से शुक्रियाँ ।