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चीजोँ मेँ कुछ चीज, बातोँ मेँ कुछ बातेँ,
वो होगी, जो देख नहीँ पाओगे
कुछ समय बाद, बस ढूँढते रह जाओगे ।
बच्चोँ मेँ बचपन, जवानोँ मेँ यौवन,
संतो की वाणी, कर्ण सा दानी
नल मेँ पानी, जैल सिँह सा ग्यानी
नानी की कहानी, रावण सा अभिमानी ।
कुछ सालोँ बाद, बस ढूंढते रह जाओगे ।
गाय के दूध सा मटठा, लड़कियोँ का दुपट्टा
बाप जो समझाये, बेटा जो मान जाये
चरते ढोर, नाचते मोर
चहकता पनघट, लम्बा सा घूंघट,
कुछ सालोँ बाद, बस ढूंढते रह जाओगे।
सांस लेने की ताजी हवा, सरकारी अस्पतालोँ मेँ दवा
नेताओ को चुनाव जीतने के बाद, कर्जदार को उधार देने के बाद
रिस्तोँ मेँ लिहाज, सस्ता ईलाज
कुछ सालोँ बाद, बस ढूंढते रह जाओगे ।
अध्यापक जो सुबह दिखाये, अफसर जो रिश्वत न खाये
स्कूलोँ मेँ पढ़ाई, शादियोँ मेँ शहनाई
चांद सा खिलौना, लोरी सुनकर सोना,
कुछ साल बाद, बस ढूंढते रह जाओगे ।
9 टिप्पणियाँ:
आज जिस तरह से संसार में हम परम्परा की चीजों को ख़तम होते हुए देख रहे हैं उस दृष्टिकोण से आपकी यह कविता सही स्थितियों को सामने लाती है ...आपका आभार
ग्यानी...ज्ञानी
रिस्तोँ ...रिश्तों
कृपया इन शब्दों को इस तरह लिखें ..!
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
सही कहा आपने।
बहुत सी चीज़ें तो आज भी बस ढूँढ ही रहे हैं ...
सटीक और सार्थक रचना
गंभीर विषय पर सहज कविता..
वाह अशोक जी,खूब लिखा है.
majak majaak me bahut hi serious likh gaye bandhu!
badhai kabule, baise Nalo me paani to na jane kab se gayab he!
mere khayal; se wo pani, ab doodh me ja raha he!
बाकी सब से सहमत हूं ,बस रावण सा अभिमानी ही अधिक दिखेगा ...
BAHUT KHUB KAHA. SAYAD AANE WALE KAL ME BAHUT CHIJ DUNDHNE SE NAHI MILENGI. SUNDAR RACHANA
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