सोमवार, जुलाई 05, 2010

मेरा भ्रम

ना जमीँ हैँ, ना आसमाँ,
जाने पड़े हैँ,कदम मेरे कहाँ?

यह भ्रम ही है मेरा
या है मेरी ही दास्ताँ?

चले हैँ हम जाने कहाँ?
नहीँ है यहाँ कोई रास्ता!

सभी कुछ तो है बस तेरे सिवा यहाँ,
तू ही नहीँ है बस, है सारा जहाँ यहाँ!

दिल है, जिगर है, हिम्मत है,
बस नहीँ है तो तेरे करीब आने का रास्ता!

2 टिप्पणियाँ:

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

क्या प्यारी गजल कही हैँ आपने। शब्दोँ का अच्छा उपयोग करते हैँ आप।

Ramesh singh ने कहा…

वाह! कमाल लिखा हैँ। बधाई!