गमोँ की झलक से जो डर जाते हैँ।
वो जीने से पहले ही मर जाते हैँ।।
रुठे हो किनारे भी जिन से।
वो डूबकर भी पार उतर जाते हैँ।।
यादोँ की टीस कहाँ जाती हैँ।
जख्म तो वक्त के साथ भर जाते हैँ।।
खौफ कितना हैँ हमारे अन्दर।
अपनी साँस की शोर से ही डर जाते हैँ।।
शबनम के सुरुर की तरह हँस-रोकर।
सबके दिन रात तो गुजर जाते हैँ।।
बे-शऊर हम तेरी नादानी से।
उनकी नजरोँ से उतर जाते हैँ।।
महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
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3 वर्ष पहले
15 टिप्पणियाँ:
खूबसूरत रचना है ...इसे गज़ल रूप में प्रकाशित करें ...
चर्चा मंच पर आपकी रचना चर्चा मंच के सदस्य स्वयं ही ले लेंगे ....आपको उसके लिए कुछ विशेष नहीं करना है ..बस रचना पाठक को अच्छी लगनी चाहिए ...
वाह ! बहुत खूब लिखा है आपने! बिल्कुल सही कहा है आपने की जो ग़मों की झलक से डरते हैं वो जीने से पहले ही मर जाते हैं! शानदार प्रस्तुती!
आप ने बहुत कमाल की गज़ले कही हैं
गजल बहुत अच्छी लगी धन्यवाद|
गमोँ की झलक से जो डर जाते हैँ।
वो जीने से पहले ही मर जाते हैँ।।
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल! वैसे बात भी एकदम ठीक है.
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल! वैसे बात भी एकदम ठीक है.
अब बहुत अच्छी लग रही है .. :) हर शेर वज़नदार ..बहुत खूबसूरत
उम्दा है ,बधाई ।
शबनम के सुरुर की तरह हँस-रोकर।
सबके दिन रात तो गुजर जाते हैँ।।
बे-शऊर हम तेरी नादानी से।
उनकी नजरोँ से उतर जाते हैँ।।
...bahut kuch kahne ka yah khoobsurat andanj bahut achha laga..
badhiya ashaar hain , pasand aaee gazal ...
Waah! kya baat hai ....behad umda gazal.
Badhai
...गमोँ की झलक से जो डर जाते हैँ।
वो जीने से पहले ही मर जाते हैँ।।
Mindblowing !
bahut hi khubsurat likha hai aapne...bhadhai....
आपकी गजल मेँ शब्दोँ का चयन बहुत खूबसूरत हैँ। आभार।
बहुत ही खुबसूरत बात कही आपने जिंदगी के हर पहलु से अवगत करा दिया हो जेसे !
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