शनिवार, अगस्त 14, 2010

परिन्देँ

पूछता कौन है परिन्दे से,
तू किस डाली का महमान हैँ।

बैठ जाये तू जिस डाली पे,
बस वही तेरा जहान हैँ।।

9 टिप्पणियाँ:

Dr.Rakesh Sharad ने कहा…

पंछी जहाँ जाते है वही अपनी दुनियाँ बना लेते है कितना सटीक कहा हैँ आपने। अति सुन्दर!

Chinmayee ने कहा…

पंछियोँ का संसार निराला होता है । सुन्दर पंक्तियाँ! आभार

Suprabhat ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ।बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेहतरीन ....तभी तो लगता है की काश हम भी परिंदा होते ..

ओशो रजनीश ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ।बधाई

कविता रावत ने कहा…

सच में आदमी ही है जो एक आशियाना बनाने तक को मोहताज हो जाता है!

नीरज ने कहा…

वाह जनाब वाह मैंने आपकी रचनाए पहली बार सुनी और आपके मुरीद हो गए हैं...
बाकमाल लिखते हैं आप.... बहुत खूब

Ramesh singh ने कहा…

छोटी मगर बहुत अर्थपूर्ण रचना । बधाई।

संजय भास्‍कर ने कहा…

पूछता कौन है परिन्दे से,
तू किस डाली का महमान हैँ।

......सुन्दर पंक्तियाँ! आभार