रविवार, दिसंबर 05, 2010

एक चर्तुभुज बनाके छोड़ा मुझे


एक   चर्तुभुज    बनाके    छोड़ा    मुझे ,
कभी वर्ग बनाया, कभी त्रिभुज बनाया

ये    कैसी   कयामत    आई,   ये    कैसा   जुल्म    ढाया
कभी परिमाप से मापा मुझे, कभी क्षेत्रफल मेँ नपाया।



कभी प्लस मेँ तो कभी माइनस मेँ खुद को पाया,
भाग तो बहुत दिए पर कभी शेष न बच पाया

कभी बनाके बिगाड़ा, कभी खुद ही बनाया,
शेष जो बचा हमेशा जीरो (0) ही पाया

27 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह जी पूरे गणित की किताब हो गए ..बहुत खूब

केवल राम ने कहा…

कभी बनाके बिगाड़ा, कभी खुद ही बनाया,
शेष जो बचा हमेशा जीरो (0) ही पाया
क्या बात है ...अब आया गणित समझ में....क्या कमाल है .....बहुत खुबसुरत ..क्या कहूँ ...शुक्रिया

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

@>>प्रवीण पाण्डेय जी
@>>संगीता स्वरूप जी
@>>केवल राम जी

आप सभी का ब्लोग पर आने तथा मेरी गणितमय कविता के लिए उत्साह बढ़ाने और आपके स्नैह के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

Shah Nawaz ने कहा…

वाह! बेहतरीन रचना... ब्लॉग का डिजाईन भी एक दम ज़बरदस्त बना लिया है... बहुत खूब!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

गणित को बहुत अच्छे ढंग से पिरोया है आपने अपनी रचना में...बधाई...

नीरज

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत खूब.....सुन्दर रचना....

naresh singh ने कहा…

गणित में बहुत कुछ कह दिया | सुन्दर रचना |

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

hindi kavita ko ganit se bahen milate dekh achchha laga:)

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> शाहनवाज जी कविता के लिए हौसला बढ़ाने तथा ब्लोग के डिजाईन को सराहने के लिए आपका आभारी हूँ ।

>>> नीरज जी आपकी टिप्पणीयोँ से जो ऊर्जा मिलती हैँ वह मुझे काफी उत्प्रेरित करती है ।

>>> मोनिका शर्मा जी आप काफी active person हैँ । मेरे अन्य blogs पर भी उपस्थित रहने के लिए आपका दिल से शुक्रिया ।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> नरेश सिँह राठौर जी कविता को सराहने के लिए शुक्रियाँ जी।

>>> मुकेश कुमार सिँहा जी आपको कविता पसन्द आयी और आपके इस स्नैह के लिए शुक्रियाँ जी

Kunwar Kusumesh ने कहा…

she appears to be a mathmetician

संजय भास्‍कर ने कहा…

ये कैसी कयामत आई, ये कैसा जुल्म ढाया
कभी परिमाप से मापा मुझे, कभी क्षेत्रफल मेँ नपाया।
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ब्लोग डिजाईन.....ज़बरदस्त है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी प्लस मेँ तो कभी माइनस मेँ खुद को पाया,
भाग तो बहुत दिए पर कभी शेष न बच पाया

गणित के इस नए प्रयोग से अपने रचना की थ्योरम जरूर सोल्व कर ली है .... अच्छी रचना ...

निर्मला कपिला ने कहा…

जीवन का गणित भी अजीब है\ जब जमा करते हैं तो माइनस हो जाता है। अच्छी लगी रचना। बधाई।

रचना दीक्षित ने कहा…

सुन्दर गणित सुन्दर रचना

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

कभी प्लस मेँ तो कभी माइनस मेँ खुद को पाया,
भाग तो बहुत दिए पर कभी शेष न बच पाया

भई वाह क्या खूब लिखा है...

http://veenakesur.blogspot.com/

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> कुवँर कुशमेश जी आपका आर्शीवाद हमेशा बना रहेँ। आपका स्नैह मिलता रहेँ।

>>> संजय भास्कर जी कविता के लिए हौसला बढ़ाने तथा ब्लोग के डिजाईन को सराहने के लिए धन्यवाद।

>>> दिगम्बर नासवा जी उत्साहवर्धन तथा आपके स्नैह के लिए तहेदिल से शुक्रियाँ।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> निर्मला कपिला जी बिल्कुल सही कहा है आपने
जीवन मेँ हर प्लस के बाद माइनस और हर माईनस के बाद प्लस को आते रहना ही है।

>>> रचना दिक्षित जी तथा वीना जी कविता को सराहने तथा ब्लोग पर आने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रियाँ।

शारदा अरोरा ने कहा…

plus minus ki khoob kahi , pakad me to kuchh aata hi nahi ...sara khel bhi man ka hi hai ....chaho to ek aur ek gyarah kar lo ...jo chaho to mutthi khali hi samjho ..isi priprekhy me ise padh kar dekhen ..

बन्द थी मुट्ठी खाली ही
http://shardaarora.blogspot.com/2010/11/blog-post_25.html

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

jiwan ke ganit ko bakhobi smjhaya hai aapne.. ati sundar

M VERMA ने कहा…

वाह नया अन्दाज

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

>>> शारदा अरोरा जी बिल्कुल सही कहा जी आपने "बन्द थी मुट्ठी खाली ही" ऐसा ही है जीवन मेँ ।

>>> एम. वर्मा जी और अरूण चन्द्र राय जी कविता को सराहने तथा आपके स्नैह के लिए शुक्रियाँ ।

Sadhana Vaid ने कहा…

जीवन के हिसाब में पास हुए या फेल यह तो आपको ही पता होगा कविता के हिसाब से बहुत अच्छी रचना ! बधाई एवं आभार !

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

वाह! बेहतरीन रचना..
जिन्दगी का बेहतरीन चित्रण प्रस्तुत किया हैं आपने
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

मालीगांव
साया
लक्ष्य

अनुपमा पाठक ने कहा…

saare ganitiya ehsaas jeevant ho uthe!

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

कभी प्लस मेँ तो कभी माइनस मेँ खुद को पाया,
भाग तो बहुत दिए पर कभी शेष न बच पाया ||

सर जी, आज आप ने मेरी पहली महिला मित्र की याद दिला दी, वो इंजीनियरिंग कॉलेज में थी, और मैं सीधा साधा एम.ए. करने वाला! बड़ा हिसाब किताब आता था उसको| शायद आप भी मैथ के उस फेर में पड़े होंगे कभी!!!!!
कविता के लिए बधाई स्वीकारें..........