हमने दिल लगा तो लिया है उनसे,
मगर दिल लगाने की सजा पाई हैँ।
लोग पत्थरोँ से चोट खाते हैँ,
हमने तो फूलोँ से चोट खाई हैँ।।
तमन्ना थी हमको सुहाने मौसम की,
मगर क्यूँ गमोँ की बरसात पाई हैँ।
कहते हैँ लकीरोँ मेँ तकदीर लिखी होती है,
मगर हमनेँ लकीरोँ से ही मात खाई है।।
गालिब ने दुआ दी जिँदगी हजार साल हो,
मगर सालोँ की जिँदगी दिनोँ मेँ बिताई हैँ।
जुग्नूँ बनके आया शमाँ के पास रोशनी के लिए,
मगर शमाँ ने तो मौत की सौगात दी है।।
महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
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2 वर्ष पहले
3 टिप्पणियाँ:
अशोक जी , क्या खूब गजल कही है। दिल लगाने मेँ सजा तो मिलती ही हैँ। भाई सजा तो हमने भी बहुत पाई हैँ। बधाई!
सुन्दर भावपूर्ण रचना.......शुभकामनायेँ।
दिल की बात आपने दिल से लिखी हैँ। शुभकामनायेँ!
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