सोमवार, जुलाई 05, 2010

दिल लगाने की सजा

हमने दिल लगा तो लिया है उनसे,
मगर दिल लगाने की सजा पाई हैँ।

लोग पत्थरोँ से चोट खाते हैँ,
हमने तो फूलोँ से चोट खाई हैँ।।

तमन्ना थी हमको सुहाने मौसम की,
मगर क्यूँ गमोँ की बरसात पाई हैँ।

कहते हैँ लकीरोँ मेँ तकदीर लिखी होती है,
मगर हमनेँ लकीरोँ से ही मात खाई है।।

गालिब ने दुआ दी जिँदगी हजार साल हो,
मगर सालोँ की जिँदगी दिनोँ मेँ बिताई हैँ।

जुग्नूँ बनके आया शमाँ के पास रोशनी के लिए,
मगर शमाँ ने तो मौत की सौगात दी है।।

3 टिप्पणियाँ:

HOT BOY ने कहा…

अशोक जी , क्या खूब गजल कही है। दिल लगाने मेँ सजा तो मिलती ही हैँ। भाई सजा तो हमने भी बहुत पाई हैँ। बधाई!

suman gaur ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण रचना.......शुभकामनायेँ।

Friend ने कहा…

दिल की बात आपने दिल से लिखी हैँ। शुभकामनायेँ!