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11 माह पहले
29 टिप्पणियाँ:
जख्मीँ करके वो ऐसे चले गये,
आसमाँ से जैसे ओझल हुये तारे,
बहुत खूब ..यह तो अक्सर होता है इश्क में ..
चलते- चलते पर आपका स्वागत है
भावों की प्रखर अभिव्यक्ति।
जज़्बात बखूबी लिखे हैं
4/10
काम चलाऊ ठीक-ठाक रचना
बरखुदार अपने ब्लॉग पोस्ट का फांट कलर बदलिए
और टेम्पलेट भी. बहुत अजीब है और पढने में असुविधा भी होती है.
@केवल राम जी
@प्रवीण पाण्डेय जी
@संगीता स्वरूप जी
@उस्ताद जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.
सादर
बढ़िया!
वन्दना जी इस रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए तथा उत्साहबर्धन और आपके स्नैह के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
यशवन्त जी एवं अनुपमा पाठक जी
आपका ब्लोग पर आने तथा अपनी स्नैही टिप्पणीयोँ से उत्साहबर्धन का बहुत-बहुत शुक्रियाँ।
यशवन्त जी एवं अनुपमा पाठक जी
आपका ब्लोग पर आने तथा अपनी स्नैही टिप्पणीयोँ से उत्साहबर्धन का बहुत-बहुत शुक्रियाँ।
बेहतरीन रचना...वाह...
नीरज
बीते हैँ पल तन्हा यूँ जिंदगी के हमारे,
गुजरते हैँ पतझड़ मेँ जैसे मौसम बेचारे
वाह! बेहतरीन!
विरह की वेदना का साकार चित्रण |
जज़्बातों की सटीक अभिव्यक्ति. हिंदी कविताई का उदास चेहरा आपकी रचनाओं में भी दिख रहा है.
सुन्दर रचना ! दिल की व्यथा को बखूबी अभिव्यक्ति दी है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
क्या बात है!
@नीरज गोस्वामी जी
@शाहनबाज जी
@नरेश सिँह राठोर जी
@भूषण जी
@साधना वैद जी
@रविन्द्र रवि जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा हौसला बढ़ाने और स्नैह के लिए दिल से शुक्रिया जी।
खूब अनुभव हैं आपके साहब।
रह रह के दिल मेँ टीस उठती है,
इस कदर जैसे कोई खंजर मारे हमारे,
दिल टूटने की सच्चाई को शब्द दे दिया है आपने ... बहुत खूब ...
premparak kavita bhi achchhi aur side show bhi sundar
रह रह के दिल मेँ टीस उठती है,
इस कदर जैसे कोई खंजर मारे हमारे,
अति सुन्दर रचना मन को छू लेने वाले विचारों को इस रचना में पिरोकर आपने बहुत ही सुन्दर बना दिया है।
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
बीते हैँ पल तन्हा यूँ जिंदगी के हमारे,
गुजरते हैँ पतझड़ मेँ जैसे मौसम बेचारे,
bबहुत अच्छा प्रयास है। लिखते रहिये। शुभकामनायें।
बहुत अच्छा प्रयास है ।
मात्राओं का ध्यान रखना ज़रूरी है ।
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति....
>>>तिलक राज कपूर जी रचना को पढ़कर सराहने के लिए धन्यवाद।
>>>दिगम्बर नासवा जी उत्साह बढ़ाने और आपके स्नैह के लिए शुक्रियाँ।
>>> कुवँर कुशमेश जी हौसला अफजाई और रचना को सराहने के लिए आपका दिल से आभार ।
दिन में तो देखे हाथ प्यारे प्यारे
रात में भी हाथ ऊँचा तू मारे
ज्योतिषी बनकर भाग बांचे छोरियों का
तीर नैनन के खात है प्यारे प्यारे
पेश है एक ग़ज़ल
अजीब लोग हैं क्या मुंसिफ़ी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है
ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाए नाला-ओ-फ़रियाद शायरी की है
ज़रा से पांव भिगोए थे जाके दरिया में
ग़ुरूर ये है कि हमने शनावरी की है
इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा
ये क़त्ल-ऐ-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है
हमारी क़द्र करो चौदहवीं के चाँद हैं हम
ख़ुद अपने दाग़ दिखाने को रौशनी की है
उदासियों को 'हफ़ीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को ज़रूरत शगुफ़्तगी की है
दिन में तो देखे हाथ प्यारे प्यारे
रात में भी हाथ ऊँचा तू मारे
ज्योतिषी बन भाग बांचे छोरियों का
तीर नैनन के खात है प्यारे प्यारे
पेश है एक ग़ज़ल
अजीब लोग हैं क्या मुंसिफ़ी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है
ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाए नाला-ओ-फ़रियाद शायरी की है
ज़रा से पांव भिगोए थे जाके दरिया में
ग़ुरूर ये है कि हमने शनावरी की है
इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा
ये क़त्ल-ऐ-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है
हमारी क़द्र करो चौदहवीं के चाँद हैं हम
ख़ुद अपने दाग़ दिखाने को रौशनी की है
उदासियों को 'हफ़ीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को ज़रूरत शगुफ़्तगी की है
बहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है
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