महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
...
3 वर्ष पहले
26 टिप्पणियाँ:
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ...
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ...बधाई ।
kya pyara aaina dikha diya aapne...:)
bahut bahut badhai...:)
asdhok ji bahut sundar
bahut achhi lagi
bahut - bahut dhanywaad
चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम...
तब जानोगे प्रेम क्या होता है...वाह
bahut sunder rachna
bahut khub..
..
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
तुम जहां भी रहो सर पे तो तुम्हारे ये इल्जाम है !
तुम्हारी हाथों कि लकीरों मै उनका ही तो नाम है !!
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल !
चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम
sunder panktiyan!!! wah!
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ...बधाई
चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम ।
वाह वाह, क्या बात है .
सुंदर प्रस्तुति अशोक भाई
>>>सदा जी
>>>मुकेश कुमार सिन्हा जी
>>>दीप जी
>>>रश्मि प्रभा जी
आप सभी का ब्लोग पर आने और हौसला अफजाई तथा आपके स्नैह का बहुत बहुत शुक्रियाँ ।
>>>दीप्ति शर्मा
>>>मीनाँक्षी पंत जी
>>>अंजना गुड़ियाँ जी
>>>संजय कुमार चौरसिया जी
आप सभी का ब्लोग पर आने और गजल को सराहने के लिए धन्यवाद ।
चाहो जब आके देख लो तुम्हीँ को ,
खोजते मिलेँगे हाथोँ की लकीरोँ मेँ हम
खूबसूरत गजल. बधाई
भाव सुंदर हैं
आईँ थी जब सामने तुम मेरे ,
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
वाह क्या बात है
बहुत ही सुन्दर
"आप सभी को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
>>> कुवँर कुशमेश जी
>>> नवीन जी
>>> रचना दीक्षित जी
>>> प्रवीण पांडेय जी
आप सभी का ब्लोग पर आने और प्रोत्साहन तथा उत्साह बर्धन के लिए आभारी हूँ ।
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति| बधाई|
>>>अनवर जमाल जी
>>>कैलाश सी शर्मा जी
>>>संजय भास्कर जी
>>>पाटिली दी विलेज जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा आपके प्रोत्साहन और स्नैह के लिए बहुत बहुत आभार ।
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.....मकर संक्रांति की ढेरों शुभकामनाएँ !"
आईँ थी जब सामने तुम मेरे ,
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ।
बहुत सुंदर पंक्तियां....
आईँ थी जब सामने मेरे तुम ,
मुस्कुराने लगे थे मेरे सारे गम ।
बेहतरीन लिखा है...अशोक भाई!!!
अच्छे भावों वाली बेहतरीन रचना...इसे ग़ज़ल कहने में अभी वक्त लगेगा...लिखते रहें...
नीरज
ग़ज़ल क हर शे’र प्रभावित करता है।
आ भी गये जब आमने सामने ,
फिर क्यूँ हो गई जुदा तुम ...
लाजवाब प्रस्तुति है अशोक जी ... पर ऐसा होता है अक्सर .. वो आते हैं फिर जुदा हो जाते हैं ...
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