महिलाओं और पुरुषों में बांझपन (इनफर्टिलिटी) को ऐसे करें दूर।
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आज के बदलते लाइफस्टाइल के कारण इंफर्टिलिटी की समस्या बहुत देखने को मिल रही
है। पुरुष हो या महिला इंफर्टिलिटी के कारण पेरेंट्स बनने का सपना अधूरा रह
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3 वर्ष पहले
25 टिप्पणियाँ:
दर्द को जो शब्द दिए हैं ..उनका कोई जबाब नहीं ....अंतिम शेर बहुत प्रभावी है ......आपका आभार इस भावपूर्ण गजल के लिए
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
बहुत लाज़वाब शेर...बहुत भावपूर्ण गज़ल.
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
...waah
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
बहुत ही सुन्दर खूबसूरत गजल. बधाई
बेहतरीन रचना।
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
bahut khoob ghazal kahi hai.........
मिल-मिल के मिलने का मजा क्यूँ नहीँ देते
हर बार ज़ख्म कोई नया कयूँ नहीँ देते
पर खूब ... लाजवाब मतला है और कमाल के तेवर हैं इस ग़ज़ल में ... कमाल का शेर ....
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
वाह...वाह....वाह...बेहतरीन
नीरज
वाह! बहुत सुन्दर गज़ल्।
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
kya baat kahi hai! wah!
>>>केवल राम जी
>>>कैलाश सी शर्मा जी
>>>रश्मि प्रभा जी
>>>संजय भास्कर जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा आपके प्रोत्साहन और स्नैह का बहुत बहुत शुक्रियाँ ।
>>> मनोज कुमार जी
>>> प्रवीण पाण्डेय जी
>>> साहिल जी
>>> दिगम्बर नासवा जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा उत्साहबर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
है जान से प्यारा ये दर्दे मोहब्बत! वाह वाह, क्या बात है. मोहब्बत वाकई जान से भी प्यारी होती है.
सुन्दर है
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
गर अपना समझते हो फिर दिल मेँ जगह दो
हैँ गैर तो महफिल से उठा क्यूँ नहीँ देते
बहुत खूबसूरत गज़ल
अशोक भाई, गजल का हर इक शेर जैसे दिल में उतर गया। जितनी तारीफ की जाए कम है।
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ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
>>>नीरज जी
>>>वन्दना जी
>>>अंजना (गुड़िया) जी
>>>रविन्द्र रवि जी
आप सभी का ब्लोग पर आने तथा प्रोत्साहन और प्यार के लिए तहेदिल से शुक्रियाँ ।
>>> कुवँर कुशमेश जी
>>> सदा जी
>>> संगीता स्वरूप जी
>>> जाकिर अली 'रजनीश' जी
आप सभी का ब्लाग पर आने तथा हौसला अफजाई और आपके स्नैह के लिए शुक्रिया ।
वाह वाह, बहुत खूब
भावपूर्ण खूबसूरत गजल
बधाई
आभार
खुद को ग़ज़ल-सा गुनगुनाती हुई
मनोहारी रचना ....
मन की भावनाएं मुखर हो रही हैं .
अपना समझतें हैं तभी तो बार -बार आते हैं दोस्त !
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा पड़ कर !
बधाई दोस्त !
हैँ जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत
'अंजान' कब मैँने कहा तुमसे दवा क्यूँ नहीँ देते
लाजवाब
बहुत उम्दा
गणतंत्र दिवस पर बधाई
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